Sunday, April 1, 2012

तुम एक अजनबी की तरह कभी नहीं मिली जानां ...!!


जब हम पहली बार मिले थे , तब भी और फिर कभी भी तुम मुझे अजनबी नहीं नज़र आई ..तुम्हे याद है जानां , जब हम पहली बार मिले तो तुमने मुझे अपने आलिंगन में ले लिए था और मैं तुम्हे देखता ही रह गया था .. पता नहीं क्या जादू था तुम्हारे चेहरे पर मुझे तुम बहुत अपनी सी लगी थी , लगा ही नहीं था की हम पहली बार मिल रहे है .. तुम्हे याद है , जब हम ऑटो में बैठकर अपने घर [ मैं उसे हम दोनों का घर ही कहूँगा ... क्योंकि हम अब भी वहां मौजूद है और हमारी आत्माए अब भी balcony में बैठकर बहती नदी को देखती है ] जा रहे थे ,तो सारे रास्ते मैं तुम्हे देखता रहा था .. कैसी अजीब सी कशिश थी .. तुममे .. तुमको देखा तो लगा पहले के मिले हुए है और बहुत दिनों बाद फिर से मिल रहे है .. अजनबी इस तरह से नहीं मिलते है जानां ..तुम तो बस मेरी ही थी ....क्या वो एक ख्वाब था या कोई अजनबी सी हकिक़त ...बस अब तुम नहीं हो ...कहीं नहीं !!!

तुम्हारे लिये अक्सर ये गीत गाता हूँ जब भी मुझे आज की पहली मुलाक़ात की याद आती है .


अजनबी कौन हो तुम, जब से तुम्हे देखा हैं
सारी दुनियाँ मेरी आँखों में उतर आयी हैं

तुम तो हर गीत में शामील थे, तरन्नुम बन के
तुम मिले हो मुझे, फूलों का तबस्सुम बन के
ऐसा लगता है, के बरसों से शमा आज आयी हैं

ख्वाब का रंग हकीकत में नजर आया हैं
दिल में धड़कन की तरह कोई उतर आया हैं
आज हर सांस में शहनाई सी लहराई हैं

कोई आहट सी अंधेरो में चमक जाती हैं
रात आती हैं तो, तनहाई महक जाती हैं
तुम मिले हो या मोहब्बत ने गज़ल गाई हैं


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