Wednesday, July 11, 2012

और फिर तुम्हारी याद !

आज एक नज़्म लिखी तुम्हारे लिये ...इतनी सारी यादो के साथ जीना !!!!

"और फिर तुम्हारी याद !"

एक छोटा सा धुप  का  टुकड़ा
अचानक ही फटा हुआ आकाश
बेहिसाब बरसती बारिश की कुछ बूंदे
तुम्हारे जिस्म की सोंघी गंध
और फिर तुम्हारी याद !

उजले चाँद की बैचेनी
अनजान तारो की जगमगाहट
बहती नदी का रुकना
और रुके हुए जीवन का बहना
और फिर तुम्हारी याद !

टूटे हुए खपरैल के घर
राह देखती कच्ची सड़क
टुटा हुआ एक  पुराना मंदिर
रूठा हुआ कोई देवता
और फिर तुम्हारी याद !

आज एक नाम खुदा का
और आज एक नाम तेरा
आज एक नाम मेरा  भी
फिर एक नाम इश्क का
और फिर तुम्हारी याद !


Monday, June 11, 2012

इश्क

.......तुम्हारा मेल दोस्ती की हद को छु गया
दोस्ती मोहब्बत की हद तक गई !
मोहब्बत इश्क की हद तक !
और इश्क जूनून की हद तक !

तोसे नैना लागे ...!

Friday, May 4, 2012

तेरे बिना ज़िंदगी भी लेकिन, ज़िंदगी, तो नहीं.....



तेरे बिना ज़िंदगी से कोई, शिकवा, तो नहीं,
शिकवा नहीं
शिकवा नहीं, शिकवा नहीं
तेरे बिना ज़िंदगी भी लेकिन, ज़िंदगी, तो नहीं,
ज़िंदगी नहीं
ज़िंदगी नहीं, ज़िंदगी नहीं

(काश ऐसा हो तेरे कदमों से, चुन के मंज़िल चले
और कहीं दूर कहीं ) - २
तुम गर साथ हो, मंज़िलों की कमी तो नहीं
तेरे बिना ज़िंदगी से कोई, शिकवा, तो नहीं, शिकवा नहीं

(जी में आता है, तेरे दामन में, सर छुपा के हम
रोते रहें, रोते रहें ) - २
तेरी भी आँखों में, आँसुओं की नमी तो नहीं
तेरे बिना ज़िंदगी से कोई, शिकवा, तो नहीं,
शिकवा नहीं
तेरे बिना ज़िंदगी भी लेकिन, ज़िंदगी, तो नहीं,
ज़िंदगी नहीं

तुम जो कह दो तो आजकी रात, चांद डूबेगा नहीं,
रात को रोक लो
रात कि बात है, और ज़िंदगी बाकी तो नहीं
तेरे बिना ज़िंदगी से कोई, शिकवा, तो नहीं, शिकवा नहीं
तेरे बिना ज़िंदगी भी लेकिन, ज़िंदगी, तो नहीं,
ज़िंदगी नहीं

Sunday, April 22, 2012

जब भी तुम मेहंदी लगाओंगी .. मेरा नाम लिखने के लिये जगह खोजोंगी जानां .
क्योंकि न तुमने मुझे अपने दिल में रखा और न ही अपनी हथेली पर .

Tuesday, April 17, 2012

पूरे चाँद की रात...!!!


आज फिर पूरे चाँद की रात है ;
और साथ में बहुत से अनजाने तारे भी है...
और कुछ बैचेन से बादल भी है ..

इन्हे देख रहा हूँ और तुम्हे याद करता हूँ..

खुदा जाने ;
तुम इस वक्त क्या कर रही होंगी…..

खुदा जाने ;
तुम्हे अब मेरा नाम भी याद है या नही..

आज फिर पूरे चाँद की रात है !!!


Tuesday, April 3, 2012

तुमने जो मेरे साथ किया , वो ठीक नहीं किया जानां ...!

इतनी खूबसूरत जिंदगी थी .तुमने ऐसा नहीं करना था. तुमने बीच राह मुझे छोडना नहीं था . जब मुझे तुम्हारी सबसे ज्यादा जरुरत थी , तुमने उस वक़्त छोड़ा मुझे ..!!

आज कितना अकेला हूँ मैं ...!


Monday, April 2, 2012

मुक्तसर सी बात ये है तू तो है हयात ये ...!!!

आज तुमने मेरे लिए ये गीत गाया था :

" बेवजह हंस पडूँ तेरी याद की सौगात ये ,
तेरी आरजू ,तेरी जुस्तजू हैं तेरे ही ख़यालात ये ,
है मुक्तसर सी बात ये है तू तो है हयात ये "

आज भी अक्सर अकेले में मैं ये गीत सुनता हूँ , बहुत कुछ याद है जानां, बहुत कुछ .. एक ज़िन्दगी जैसे धुंध में लिपटी हुई हो ........

आह , अब सिर्फ यादे ही रह गयी है .......जानां !


तुम जो मिले तो लगा है . जैसे मिली जिंदगी ...!

सच ही तो है .. तुमसे मिलने बाद तो यही लगा था मुझे .
और तुम्हारे साथ गुजारे हुए इतने सारे पल है की क्या कहूँ .. एक एक पल में जैसे एक एक जीवन है .
तुम न मिलती तो ये जीवन अधुरा ही रहता . मैंने जान ही नहीं पाता कि प्रेम किसे कहते है .


Sunday, April 1, 2012

अजनबी शहर, रामनवमी की झांकियां , तुम और मैं और शेष प्रेम !!!



तुम्हे याद है , उस दिन भी रामनवमी थी , जब हम उस अजनबी शहर में बस यूँ ही घूम रहे थे , इस मंदिर के दर्शन करने के बाद वापस आ रहे थे. उस दिन शहर में झांकियां निकल रही थी . कितना धार्मिक माहौल था .. और हम ईश्वर के आशीर्वाद को जो कि हमें प्रेम के प्रसाद के रूप में मिल रहा था ; बस जी रहे थे .. बस जीवन वही था ......धर्म, कर्म , तुम , मैं और प्रेम......!

अब बस यादे ही रह गयी है ....सिर्फ यादे , मैं तो हूँ, पर तुम नहीं !!!





तुम एक अजनबी की तरह कभी नहीं मिली जानां ...!!


जब हम पहली बार मिले थे , तब भी और फिर कभी भी तुम मुझे अजनबी नहीं नज़र आई ..तुम्हे याद है जानां , जब हम पहली बार मिले तो तुमने मुझे अपने आलिंगन में ले लिए था और मैं तुम्हे देखता ही रह गया था .. पता नहीं क्या जादू था तुम्हारे चेहरे पर मुझे तुम बहुत अपनी सी लगी थी , लगा ही नहीं था की हम पहली बार मिल रहे है .. तुम्हे याद है , जब हम ऑटो में बैठकर अपने घर [ मैं उसे हम दोनों का घर ही कहूँगा ... क्योंकि हम अब भी वहां मौजूद है और हमारी आत्माए अब भी balcony में बैठकर बहती नदी को देखती है ] जा रहे थे ,तो सारे रास्ते मैं तुम्हे देखता रहा था .. कैसी अजीब सी कशिश थी .. तुममे .. तुमको देखा तो लगा पहले के मिले हुए है और बहुत दिनों बाद फिर से मिल रहे है .. अजनबी इस तरह से नहीं मिलते है जानां ..तुम तो बस मेरी ही थी ....क्या वो एक ख्वाब था या कोई अजनबी सी हकिक़त ...बस अब तुम नहीं हो ...कहीं नहीं !!!

तुम्हारे लिये अक्सर ये गीत गाता हूँ जब भी मुझे आज की पहली मुलाक़ात की याद आती है .


अजनबी कौन हो तुम, जब से तुम्हे देखा हैं
सारी दुनियाँ मेरी आँखों में उतर आयी हैं

तुम तो हर गीत में शामील थे, तरन्नुम बन के
तुम मिले हो मुझे, फूलों का तबस्सुम बन के
ऐसा लगता है, के बरसों से शमा आज आयी हैं

ख्वाब का रंग हकीकत में नजर आया हैं
दिल में धड़कन की तरह कोई उतर आया हैं
आज हर सांस में शहनाई सी लहराई हैं

कोई आहट सी अंधेरो में चमक जाती हैं
रात आती हैं तो, तनहाई महक जाती हैं
तुम मिले हो या मोहब्बत ने गज़ल गाई हैं


Saturday, March 31, 2012

तुमसे मिलने की यात्रा....!!


मैं आज के दिन तुमसे ही मिलने निकल चला था जानां , एक नये शहर की ओर , जो कि तब तक के लिए मेरे लिए अजनबी था , जब तक कि मैं तुमसे उस शहर में नहीं मिला. तुमसे मिलने के बाद न तुम अजनबी रही और न ही वो शहर. ज़िन्दगी भी बड़ी अजीब है , जिनसे कभी न मिलना चाहे , उन्ही से जोड़े रखती है और जिनके संग रहना चाहे , उनसे दूर कर देती है . तुम पहली बार मुझसे मिल रही थी , लेकिन मुझे लग रहा था कि हम दोनों बरसो से ..नहीं नहीं शायद जन्मो से के दुसरे को जानते थे . और वही हुआ , जब हम मिले..... तुमसे मिलने की यात्रा में बहुत से ख्याल तैरते रहे जेहन में .. कि तुम कैसी होंगी , कैसी दिखती हो .तुम्हारे ख़त ने भी वही कहा था, मैं बहुत से अजनबियों से मिला हूँ ज़िन्दगी के सफ़र में , लेकिन तुमसे मिलना रोमांचक था,. रोमांटिक था. रहस्य में लिपटा हुआ था . जीवन की धडकनों से भरा हुआ था. हर अहसास में तुम ही थी ..सिर्फ तुम !!!


तेरे बिना ज़िन्दगी से शिकवा तो नहीं ....!



सोचता हूँ कि तुम्हारे मेरे ज़िन्दगी में न होने से सिर्फ दुःख और खालीपन ही है ,पर ज़िन्दगी तो चल ही रही है क्योंकि खुदा के बनाए हुए इस निजाम में कभी भी कुछ भी नहीं रुकता है . ज़िन्दगी चलती ही रहती है .. यदि सोचना भी चाहे तो भी नहीं रूकती , सिवाय इसके कि उसके ख़त्म होने का समय आ जाये . और कभी कभी ये भी सोचता हूँ कि खुदा की शायद यही रज़ा थी कि मैं तेरे बिना और तू मेरे बिना ही जिये . और एक दुसरे की यादो में तड़प कर जिये और मरे.... पर ज़िन्दगी का रंग भी चटक ही होता है ... क्योंकि जीना इसी का नाम है ! पर आज फिर तेरी याद बहुत आ रही है !


Monday, February 20, 2012

क्या वो वाकई हम दोनों ही थे जानां !


पिछले कई दिनों से एक ही बात दिल में समायी हुई है बस और कुछ सोच में नहीं आता है.
 
वो बसेरा; जिसमे हम अक्सर रुका करते थे और नदी के बीच स्थित वो पत्थर जो हमारे की खिडकी /बरामदे से दिखाई देता था.
 
और वो बहती नदी - जो कभी भी आँखों से ओझल नहीं हुई, चाहे वो दिन हो या रात , चाहे वो सुबह हो या शाम .

क्या जगह थी !!!
क्या जिंदगी थी !!!!
 
क्या वो वाकई हम दोनों ही थे जानां !