Saturday, October 16, 2010

फासला


ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी
ये तो बता की साँसों में और तुझ में ये फासला क्यों है
वो जो मेरा अपना है उसमे और मुझे ये फासला क्यों है

माना की ये मेरे सपने है
पर इन सपनो से तेरा दामन कैसे छुडा लूँ
क्योंकि तेरे दामन से ही लिपटी हुई है मेरी ज़िन्दगी
और इसी दामन से शिकवा की ये फासला क्यों है

तू जो नहीं यहाँ मेरे नसीब के साये में तो
आरजू सारी तेरी गली में आके साँसे लेती है
इन साँसों से क्या गिला करे कोई
की इनमे और मुझे में ये फासला क्यों है

कोई तेरी हंसी हो ,कोई तेरी ख़ुशी हो
कहीं तो , तू मेरे साथ हो
जहाँ मेरी ज़िन्दगी तू हो
ऐसी कोई दुनिया अगर है तो उसमे और मुझे में ये फासला क्यों है



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