क्या कहे और क्या न कहे ....
जीवन अब शब्दों का खेल बन गया है
मैं मुझमे ही अपने अक्स को ढूंढता हूँ
किसी मोड़ पर छुटे हुए साये को तलाशता हूँ मैं .....
शायद अब तेरे दिल के किसी अँधेरे कोने में रहता हूँ
बाते अब अहसास बन गये है ............
साँसे अब जीवन के चिन्ह बन गये है ......
इनके निशान अब तेरे वजूद में तैरते हैं ....
कहीं तेरा नाम ,मैं तो नहीं ..........
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