क्या तुमने अपने आप से या मुझ से पुछा है
कि,मैं तुम्हे इतना क्यों देखता हूँ......
वो क्या बात है तुम्हारी आँखों में या
तुम्हारे चेहरे में जो औरो में नहीं ;
क्यों .........
सोचो तो जानोंगी .
कि मैं तुम्हारे पिछले जनम की तलाश कर रहा हूँ ..
जब तुम मुझसे जुदा हो गयी थी ...
तुम्हारा सब कुछ इतना अच्छा क्यों लगता है ,
इतना जाना पहचाना क्यों लगता है ...
क्यों वो बातें अपनी सी लगती है
क्यों वो जिस्म की नज़दीखियाँ पहचानी सी लगती है
क्यों जब मेरे हाथ तुम्हे छूते है तो
कोई धुंध में छिपा चेहरा आँखों में धुंधलाता है
क्यों तुम्हारी गर्म साँसे मुझसे तेरा नाम कहती है ....
जांना ; तुम किसी खुदा को जानती हो ,
जो हमारे बारे में हमें बता सके....
क्यों तुम किसी जनम मुझसे जुदा हो गयी थी ..
और अब इतनी देर बाद क्यों मिली ....
जांना , मैं बहुत उदास सा हूँ.
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