Saturday, October 16, 2010

प्रतीक्षा



मैं हूँ तुम्हारी प्रतीक्षा में ;
कई जन्मो से प्रिये .....

अपने ह्रदय के द्वार खुले छोड़ रखे है मैंने ;
ये द्वार अब सिर्फ तुम्हारा ही स्वागत करने के लिए आतुर है ...

और हाँ मन की बंशी  भी सजाई हुई है मैंने ;
ये बंशी अब तुम्हारे लिए ही प्रेम के मधुर संगीत सजाती है

और जो कवितायेँ लिखी है तुम्हारे लिए ,
उनके पन्नो को अपने होंठो पर छाप लिया है मैंने ;
सारे शब्द अब तुम्हारा ही नाम बन गए है ...

और मैं तुम्हारे प्रेम के मौन में निशब्द हूँ ;
उस दिन से जब मैंने तुम्हे जाने बिना ही ,देखे बिना ही ;
तुमसे एक जन्मभर के प्रेम बंधन में बंध गया था ;

और मेरा एकांत , अब एकांत कहाँ रहा
ये चहकता  है तुम्हारे प्रेम की किलकारियों से ;
ये महकता है  तुम्हारे प्राणों की जानी हुई गंध  से ;
ये गूंजता है  तुम्हारे मन की आहटो से ;
ये मुस्कराता है तुम्हारे आने की खुशबू से ;
और ये रोता भी है ,तुम्हारे जाने की हलचल से ..

हाँ , अब तो आ जाओ प्रिये
अब नहीं रहा जाता ..
प्रेम ने हमें एक दूजे के लिए बनाया है
अब तेरे बिना कुछ भी जिया नहीं जाता .

आ जाओ प्रिये
मेरी बाहें तुम्हारा इन्तजार कर रही है
मेरी आँखे तुम्हारा इन्तजार कर रही है
मेरे होंठ तुम्हे पुकारते है
आ जाओ जानां  ,
बस और प्रतीक्षा न करवाओ
मुझसे मिलकर मुझे में समां जाओ ....
मैं हूँ तुम्हारी प्रतीक्षा में ...............

कई जन्मो से तुम्हारी प्रतीक्षा में ...
तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा ..

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