Saturday, October 16, 2010

तुम्हारा नाम जानां है ...


रात की तन्हाई में जब तुम 
गहरी साँसे लेती हुई सो रही होती हो...
तो क्या तुम्हे पता होता है की 
मैं तुम्हे देख रहा हूँ ...
तुम्हारी पीठ के पीछे से ...
तुम्हे छूते हुए ...
अपने अधरों से तुम्हे अपना परिचय देते हुए...
मैं तुम्हे अपना नाम बताता हूँ...

जब मैं जीना जीना  उतरता हूँ ,  
सपनो के शहर में किसी एक कमरे के भीतर ..
किसी गहरे प्रेम के तहखानों में 
तुम्हारी आवाज की गूँज सुनाई देती है
जहाँ तुम होती हो अपनी बाहों को फैलाये हुए .. 
मेरा स्वागत करते हुए ..
क्योंकि मैं अनजान से देश से आया हूँ
तुम्हे ..तुमसे मिलाने के लिए ... 

क्या मेरे अधर तुम्हे मेरा परिचय नहीं देते या 
तुम्हे तुम्हारा नाम नहीं बताते..........
तुम्हारा नाम जानां है ...


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