Saturday, October 16, 2010

" एक अँधेरी सुरंग के अहसास "



जब भी मैं अपने सफ़र को देखता हूँ तो
कुछ और नजर नहीं आता दूर दूर तक ......
ज़िन्दगी अब एक लम्बी सुरंग हो चुकी है ....

जिसकी सीमा  के पार कुछ नज़र नहीं आ रहा है ...
कहीं ; कोई रौशनी का दिया नहीं  है
मैं तेरा हाथ पकड़कर चल रहा हूँ ..
अनवरत ....किसी अनंत की ओर .....
जहाँ ,किसी आखरी छोर पर ;  हमें कोई खुदा मिले
और अपनी खुली हुई बाहों से हमारा स्वागत करे.... 

मैं अक्सर नर्म अँधेरे में तेरा चेहरा थाम लेता हूँ
और फिर हौले से तेरा नाम लेता हूँ
तुझे मालूम होता है कि , मैं कहाँ हूँ 
तू मुझे और मैं तुझे छु लेते है ........
मैं चंद साँसे और ले लेता हूँ
कुछ पल और जी लेता हूँ ...
.....इस सफ़र के लिए ... तेरे लिये !!!

अक्सर रास्ते के कुछ अनजाने मोड़ पर
तुम रो लेती हो जार जार ....
मैं तुम्हारे आंसुओ को छु लेता हूँ.....
जो कि ; जन्मो के दुःख लिए होते है
और कहता हूँ कि; 
एक दिन इस रात की सुबह होंगी !
तुम ये सुन कर और रोती हो
क्योंकि जिस सुरंग में हम चल रहें है
वो अक्सर नाखतम सी सुरंगे होती है ...

मुझे याद आता है कि ;
ज़िन्दगी के जिस मोड़ पर हम मिले थे
वो एक ढलती हुई शाम थी
वहां कुछ रौशनी थी ,
मैंने डूबते हुए सूरज से आँख-मिचौली की
और तुझे आँख भर कर देख लिया ...
और तुझे चाह लिया ; सच किसी खुदा कि कसम !!!
और तुझे 'तेरे' ईश्वर से इस उम्र के लिये मांग लिया !!!

तुझे मालुम न था कि इस चाह  की सुरंग 
इतनी लम्बी होंगी 
मुझे यकीन न था कि मैं तेरे संग
इसे पार  न कर पाऊंगा 
पर हम तो किस्मत के मारे है ...

कुछ मेरा यकीन , कुछ तेरी चाह्त ,  
कुछ मेरी चाहत और तेरा यकीन
हम सफ़र पर निकल पड़े  .......
ज़िन्दगी की इस सुरंग में चल पड़े ...
और सफ़र अभी भी जारी है........
जारी है ना मेरी 'जांना' !!!

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