Saturday, October 16, 2010

ज़िन्दगी की एक शाख


ज़िन्दगी की एक शाख बहुत उदास थी ...
खुदा की उस पर कोई मेहरबानी नहीं थी ...
वो शाख बड़े से सुर्ख सूरज को अकेले ;
डूबते हुए देखती थी
वो शाख हर दिन उदासी से ढलती हुई ;
शामे देखती थी
वो शाख चाँद को बड़े खामोशी से ;
उगते हुए देखती थी
वो शाख सितारों की झिलमिलाहट की ;
चमक नहीं जी पाती थी ...

वो शाख सो नहीं पाती थी .. 
जाग नहीं पाती थी.......
 
उस शाख पर एक दिन एक करिश्मा हुआ
खुदा की मेहर ने एक नेमत दी उसे.......

उस शाख पर खुदा ने एक रिश्ता बनाया
मेरा और तेरा रिश्ता ..
हमारा रिश्ता ..

शाख अब गुले गुलज़ार है उम्मीदों  से , 
खुशियों से
और जीवन की पत्तियों से .....
इश्क की खुशबू से ....

सुनो ...तुम जी रही हो ,
मेरे संग उस शाख पर ..........

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