Saturday, October 16, 2010

बस ... और क्या कहूँ ....


सावन की दस्तक .....
दे रही है हवायें
कहीं बिजली है चमक  रही ...
कही बादल  है गूँज  रहे ...
ऐसे में मुझे तुम याद आ रहे हो ..

तुम कहाँ और मैं कहाँ
तनहाइयों में आग लगा रही है
ये मौसम और हमारी विवशता .......

जांना , तुम आ जाओ और 
मेरी बाहों में समां जाओ ...
मेरे लब तरस रहे है तेरे अधरों के लिये....
बस ... और क्या कहूँ ....

No comments:

Post a Comment