सावन की दस्तक .....
दे रही है हवायें
कहीं बिजली है चमक रही ...
कही बादल है गूँज रहे ...
ऐसे में मुझे तुम याद आ रहे हो ..
तुम कहाँ और मैं कहाँ
तनहाइयों में आग लगा रही है
ये मौसम और हमारी विवशता .......
जांना , तुम आ जाओ और
मेरी बाहों में समां जाओ ...
मेरे लब तरस रहे है तेरे अधरों के लिये....
बस ... और क्या कहूँ ....
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