Saturday, October 16, 2010

जीवंत स्वपन


आज अचानक ही मेघ का एक टुकडा
जो की ज़िन्दगी से बड़ा था
मुझ पर मेहरबान हो गया
तुम्हे चेहरे पर से वो हट गया
जब वो नजरो के सामने से हटा तो
तुम थी सामने
तुम्हारी आँखे मुझे ;
किसी परियो के देश में ले जाने के लिए तैयार थी
तुम्हारे अधर मुझे एक मौन आमंत्रण दे रहे थे
और तुम मुझे अपने आगोश में लेने के लिए तैयार थी 

क्या ये स्वपन है या ....

तुम्हारा ये प्रेम का रंग मुझे अपने आप में समां लेंगा
मैं अपने साँसों से पूछ रहा हूँ की क्यों वो तेरा नाम ले रही है ....
सुनो मिलन का नशा छा रहा है मुझ पर
आकर मुझे अपनी बाहों में ले लो
अपने अधरों से मेरा स्वागत करो
और
हाँ
मुझे इस जीवंत स्वपन को जीने दो


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