एक सपने में एक आधी -अधूरी आस जगी
कहीं किसी खेत में सरसों की उवास चली
तुमने मुझे पुकारा तो नहीं जांना ...
मेरे साँसों में तेरी सांस कैसे चली ....
आसमान से एक बादल का टुकडा टुटा
तेरे नाम से उसने मेरा पता पुछा
तुमने मुझे पुकारा तो नहीं जांना ...
मेरे तन से तेरी खुशबू कैसे छूटी.......
मिटटी की गंध ने तेरे घर का पता दिया
मेघो ने तेरे आंसुओ पर मेरा नाम लिखा
तुमने मुझे पुकारा तो नहीं जांना ...
मेरे लबो पर तेरे होंठो की ये मुहर कैसी ..
सूरज की किरणों ने एक जाल बुना
चाँद ने उस पर सितारों की झालर बिछाई
तुमने मुझे पुकारा तो नहीं जांना ...
मेरे साये की तस्वीर में तेरा रंग ये कैसा...
कि एक बैचेनी सी आँखों में है छायी ..
कि मन ने कहा , तू बहुत उदास है
तुमने मुझे पुकारा तो नहीं जांना ...
कि मैं भी तुझे याद किया है......
sundar prastuti
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