अक्सर
मैं यूँ ही जीवन की राह में थककर
पीछे मुड़कर देखना चाहता हूँ कि
क्या तुम हो मेरे पीछे ,
जैसे कि तुम होती हों ,मेरे साथ ;
अक्सर दुनिया के छोटे छोटे शहरो की
बड़ी सी गलियों में मेरे साथ सफ़र करती हुई ....
मुझे मुस्कराकर देखती हुई ...और मेरा हाथ थामती हुई .....
सच , मुझे यूँ लगता है की सारी उम्र तेरे संग चलूँ....
पर अक्सर जब मुड़कर देखता हूँ तो पाता हूँ की तुम नहीं हो ...
कही भी नहीं हो ...
बस तुम्हारा अहसास है ..
तुम्हारा कोई पल , मेरे संग , मेरा साया बना हुआ होता है ...
बस तुम्हारी स्निग्ध मुस्कराहट होती है जो
मुझे कहती है की
हाँ तुम हो ; मेरे साथ इस जाने अनजाने सफ़र में.....
जीवन एक नीरस सा सफ़र था , जिसे तुमने अपनी आग से जला दिया है
आसमान अब सुर्ख रंगों से रंगा हुआ है ....
रात अब कुछ और गहरी हो चुकी होती है .
दिन कैसे ढल जाते है
उम्र के पढाव बिना रुके गुजर जाते है ....
कौन तू , कौन मैं ... रिश्ते कैसे बन जाते है
ये तेरा -मेरा से सफ़र अब हम पर ख़त्म हुआ जो है ...
क्या तुम हो ....
इस सफ़र में मेरी हमसफ़र बनकर जलने के लिए
जीने के लिए ..मरने के लिए .....
हाँ प्यार करने के लिए जांना .....
हाँ प्यार करने के लिए जांना .....
हाँ प्यार करने के लिए जांना .....
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