Saturday, October 16, 2010

तुम्हारा नाम क्या है प्रेम.......


कोई गली जो तेरे घर पहुंचती हो ;
और जिस पर चलने में तेरा खुदा मेरी मदद करे ...
क्या तुझे मालूम है ?
मैं उम्र भर उस गली में चलना चाहता हूँ ....

सोचता हूँ अक्सर मैं ;
नर्म रातो के अंधेरो में की तू कहीं है , 
मेरे आसपास मुझे छूते हुए और मुझे प्यार करते हुए 
..और ये कहते हुए की ,मैं हूँ न.....

ये सोचता हूँ की तुम यहाँ होती तो ;
मुझे चूम लेती और मैं एक सपने में खो जाता , 
जहाँ तुम रहो और मैं रहूँ ...
एक ऐसा सपना ,जिसे खुदा ने बनाया हो ....

तुम्हारा नाम क्या है प्रेम.......

6 comments:

  1. कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।

    ReplyDelete
  2. Vijay aur kavita ki jitani tarif ki jaye kam hai!

    ReplyDelete
  3. Vijay aur kavita ki jitani tarif ki jaye kam hai!

    ReplyDelete
  4. प्रेमरस मे डुबी आप की यह सुंदर रचना, धन्यवाद

    ReplyDelete
  5. achchhi lagi... sundar swapnil bhaav...

    ReplyDelete
  6. प्रेम को खोजती एक सुंदर प्रस्तुति...दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएं।

    ReplyDelete