Wednesday, October 20, 2010

अचानक एक मोड़ पर




अचानक एक मोड़ पर अगर हम मिले तो ,
क्या मैं तुमसे तुम्हारा हाल पूछ सकता हूँ ;
तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?

अगर मैं तुम्हारे आँखों के ठहरे हुए पानी से
मेरा नाम पूछूँ तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?

अगर मैं तुम्हारी बोलती हुई खामोशी से
मेरी दास्ताँ पूछूँ तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?

अगर मैं तेरा हाथ थाम कर ,तेरे लिए ; अपने ,
खुदा से दुआ करूँ तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?

अगर मैं तुम्हारे कंधो पर सर रखकर    ,
थोड़े देर रोना चाहूं ,तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?

अगर मैं तुम्हे ये कहूँ ,की मैं तुम्हे ;
कभी भूल न पाया , तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न ?

आज यूँ ही तुम्हे याद कर रहा हूँ और
उस नाराजगी को याद कर रहा हूँ ;
जिसने एक अजनबी मोड़ पर ;
हमें अलग कर दिया था !!!


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